प्रयाग न केवल तीर्थराज है, बल्कि महाशक्ति पीठ के रूप में भी प्रतिष्ठित है। प्रयाग केवल तीर्थराज ही नहीं, बल्कि महाशक्ति पीठ भी है। तंत्र ग्रंथों में प्रयागपीठ की अधिष्ठात्री देवी के तीन नामों का उल्लेख है—ललिता, कमला और माधवेश्वरी। हालांकि, ललिता देवी का सबसे अधिक बार उल्लेख होता है।
यह वैष्णव संप्रदाय में विष्णु-लक्ष्मी पीठ के रूप में जाना जाता है, जिसे वेणी-माधव और त्रिवेणी भी कहा जाता है। यह शैवों और शाक्तों के लिए सिद्धपीठ भी माना जाता है।
वैष्णव परंपरा में इसे कमला या माधवेश्वरी पीठ कहा जाता है, जहां वेणी माधव (भगवान विष्णु) भैरव माने जाते हैं।
शाक्त परंपरा में यह ललिता पीठ के रूप में प्रसिद्ध है, जहां भगवान शिव (भाव) भैरव हैं।
ललिता पीठ के प्रमुख मंदिर
प्रयाग में तीन प्रमुख मंदिर ललिता पीठ से जुड़े हुए हैं:
ललिता अलोप शंकरी देवी (अलोपीबाग)
ललिता कल्याणी देवी (कल्याणी)
ललिता देवी (मीरापुर)
हालाँकि, इन तीनों को ललिता पीठ के रूप में पूजा जाता है, लेकिन मूल पीठ का सटीक स्थान स्पष्ट नहीं है।
🔹 ललिता अलोप शंकरी मंदिर – यहां कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक ऊँचा मंच और झूला स्थित है, जिसे देवी का प्रतीक माना जाता है। यह विश्वास है कि यहाँ सती के उँगलियाँ गिरी थीं, इसलिए यहाँ हाथ से बने पकवानों का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
प्रयाग शक्ति पीठ को "शक्ति पीठों का राजा" क्यों कहा जाता है?
पं. रामनारायण शास्त्री (बाबा भूतनाथ धाम, लखनऊ) के अनुसार, प्रयाग में चार उप-पीठ हैं:
बगला उप-पीठ – गंगा के पूर्व में
चामुंडा उप-पीठ – गंगा के उत्तर में
भुवनेश्वरी उप-पीठ – यमुना के दक्षिण में (इमिलियन देवी/मसूरियन देवी)
राजराजेश्वरी मुख्य पीठ – संगम पर
ललिता शक्ति पीठ के विभिन्न मंदिर
अक्षयवट (इलाहाबाद किला) के पास देवी ललिता का मंदिर – वर्तमान में अस्तित्व में नहीं। संभवतः किले के निर्माण से पहले वहां मंदिर था।
मीरापुर का ललिता देवी मंदिर – बंगाली समुदाय इसे विशेष रूप से पूजनीय मानता है।
अलोपीबाग का अलोप शंकरी देवी मंदिर – इसे अधिकांश लोग असली ललिता पीठ मानते हैं।
कल्याणी देवी मंदिर (कल्याणी देवी) – इसे भी कुछ लोग ललिता पीठ मानते हैं।


"प्रयागे तु ललिता देवी, वाराणस्यां विशालाक्षी, विंध्ये विंध्यवासिनी।".
देवी भागवत महापुराण
प्रयाग शक्तिपीठ की प्रामाणिकता पुराणों एवं तंत्र ग्रंथों में
प्रयाग और तंत्र परंपरा
प्रयाग महात्म्य शताध्यायी के अनुसार, संगम के उत्तर में ललिता पीठ (कल्याणी) स्थित है।
यह माना जाता है कि ललिता पीठ से देवनागरी लिपि का "फ" अक्षर उत्पन्न हुआ।
तंत्र ग्रंथों के अनुसार, शक्ति पीठों की संख्या 64 बताई जाती है, जबकि कुछ ग्रंथों में मुख्य 51 शक्ति पीठ माने गए हैं।
प्रयाग के अन्य प्रसिद्ध देवी मंदिर
काली मंदिर (कालीबाड़ी, मुट्ठीगंज)
1860 में स्वामी कृष्णानंद (कलना, बंगाल) द्वारा स्थापित।
देवी काली पंचनरमुंडी आसन पर विराजमान हैं।
1953 में इसका पुनर्निर्माण हुआ।
सिद्धेश्वरी मंदिर (सिविल लाइंस)
देवी दुर्गा के नौवें रूप की पूजा यहाँ होती है।
इसे भी सिद्धपीठ माना जाता है।


"प्रयागं शक्तिपीठं तु त्रिवेणी संज्ञकं परम्। यत्र ललिता देवी श्रीविद्योपास्यरूपिणी॥"
तंत्र चूड़ामणि
प्रयाग के पास स्थित अन्य शक्तिपीठ
1. ऐंद्रि देवी मंदिर (30 किमी पूर्व, दुर्वासा आश्रम के पास)
मार्कंडेय पुराण में उल्लेख मिलता है कि देवी ऐंद्रि हाथी पर विराजमान हैं।
दुर्वासा ऋषि ने भरद्वाज ऋषि की सलाह पर यज्ञ की सिद्धि के लिए उनकी पूजा की थी।
2. शक्तिपीठ कराधाम (शीतला देवी मंदिर, 70 किमी उत्तर-पश्चिम)
कालेश्वर शिवलिंग और शीतला देवी का मंदिर स्थित है।
कहा जाता है कि यहाँ सती के हाथ गिरे थे।
प्रयाग के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
कड़ा (कराधाम) को प्राचीन काल में काल नगर और कर्कोट नगर कहा जाता था। मुस्लिम यात्री इब्न बतूता ने 1340 में इस स्थान का दौरा किया था और इसे हिंदू तीर्थस्थल बताया था।
प्रयाग के 120 किमी के दायरे में अन्य शक्तिपीठ
विशालाक्षी देवी (वाराणसी)
विंध्यवासिनी देवी (विंध्याचल, मिर्जापुर)
🔹 देवी भागवत पुराण में उल्लेख है:
"प्रयागे तु ललिता देवी, वाराणस्यां विशालाक्षी, विंध्ये विंध्यवासिनी।"
(अर्थात, प्रयाग में ललिता देवी, वाराणसी में विशालाक्षी देवी, और विंध्याचल में विंध्यवासिनी देवी प्रतिष्ठित हैं।)


"त्रिवेण्या संगमे पुण्ये ललिता तत्र संस्थिता।
सिद्धिदात्री महामाया भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।।"
कल्पद्रुम तंत्र
प्रयाग शक्तिपीठ की प्रामाणिकता : पुराणों एवं तंत्र ग्रंथों के श्लोक में
पुराणों में उल्लेख:
देवी भागवत पुराण –
"प्रयागे ललिता देवी तत्रैव भव नामकः।"
(अर्थ: प्रयाग में ललिता देवी निवास करती हैं और उनके साथ भैरव भव रूप में स्थित हैं।)कालिका पुराण –
"प्रयागे ललिता देवी भैरवस्तु भवः स्मृतः। अत्रांगुलि-भूषणं पतितं वै सतीतनोः॥"
(अर्थ: प्रयाग में ललिता देवी प्रतिष्ठित हैं, उनके भैरव 'भव' हैं। यहाँ माता सती के अंगुलि-भूषण गिरे थे।)स्कन्दपुराण – इसमें प्रयागराज को एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में दर्शाया गया है, जो माँ की शक्ति से युक्त है।
तंत्र ग्रंथों में वर्णन:
4. तंत्र चूड़ामणि –
"प्रयागं शक्तिपीठं तु त्रिवेणी संज्ञकं परम्। यत्र ललिता देवी श्रीविद्योपास्यरूपिणी॥"
(अर्थ: प्रयाग शक्तिपीठ त्रिवेणी संगम पर स्थित है, जहाँ देवी ललिता श्रीविद्या स्वरूप में पूजित हैं।)
5. कल्पद्रुम तंत्र –
"त्रिवेण्या संगमे पुण्ये ललिता तत्र संस्थिता। सिद्धिदात्री महामाया भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।।
(अर्थ: जहाँ पवित्र त्रिवेणी संगम है, वहाँ माँ ललिता (सिद्धिदात्री) विराजमान हैं।) वे सिद्धिदात्री महामाया हैं, जो भक्तों को भौतिक सुख (भुक्ति) और मोक्ष (मुक्ति) दोनों प्रदान करती हैं|)
6. महाशक्तिपीठ स्तोत्र – इस ग्रंथ में प्रयाग को देवी की उपस्थिति वाला क्षेत्र माना गया है।
7. शक्ति संगम तंत्र – इसमें प्रयाग शक्तिपीठ को तांत्रिक अनुष्ठानों और योग साधना के लिए श्रेष्ठ स्थान माना गया है।


"अलयायां ललिता देवी कानन्दप्रदायिनी।"
भावानन्दः तु तत्रैव सदा स्थितः शोभनः।।"
देवी भागवत महापुराण
प्रयाग शक्तिपीठ भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जिसका उल्लेख विभिन्न पुराणों और तंत्र ग्रंथों में किया गया है। इस शक्तिपीठ का संबंध देवी सती के अंगों के पतन से जुड़ी कथा से है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहाँ माता सती का उँगलियाँ (अंगुलि-भूषण) गिरी थीं।
प्रयाग का ललिता पीठ, 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्ति पीठ है, जो न केवल वैष्णव और शैव परंपराओं का केंद्र है, बल्कि तांत्रिक साधना और शाक्त परंपरा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। यहां के विभिन्न शक्ति उप-पीठ, काली मंदिर, और सिद्ध पीठ इसे संपूर्ण भारत में एक दुर्लभ और दिव्य तीर्थ स्थल बनाते हैं।
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प्रयाग का ललिता पीठ
प्रयागपीठ की अधिष्ठात्री देवी के तीन नामों का उल्लेख है—ललिता, कमला और माधवेश्वरी। हालांकि, ललिता देवी का सबसे अधिक बार उल्लेख होता है।











