तीर्थराज प्रयाग : एक दिव्य स्थल
"दृष्ट्वा प्रकृष्ट योगभ्यः पुष्टभ्यो दक्षिणादिभिः।
प्रयागमिति तन्नाम कृतं हरिहारिभिः।।"
अर्थात, उत्कृष्ट यज्ञों और दान-दक्षिणा से परिपूर्ण इस स्थान को देखकर भगवान विष्णु और भगवान शंकर सहित अन्य देवताओं ने इसे "प्रयाग" नाम दिया।


श्यामो वटो श्याम गुणं वृणोति स्वच्छायया श्यामलया जनानाम् ।
श्यामः श्रमं कृन्तति यत्र दृष्टः सतीर्थराजो जयति प्रयागः ।।
पद्मपुराण
प्रयाग: धर्मग्रंथों में उल्लेख
प्रयाग एक पावन तीर्थ स्थल है, जिसकी महिमा विभिन्न पुराणों और धर्मग्रंथों में वर्णित है। इसे "तीर्थराज" कहा गया है क्योंकि यह सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है।
ब्रह्मपुराण में कहा गया है:
"प्रकृष्टत्वा प्रयागो सौ प्राधान्या राज शब्दवान्।"
अर्थात, अपनी उत्कृष्टता के कारण इसे "प्रयाग" कहा गया और इसकी प्रधानता के कारण "राज" शब्द जोड़ा गया, जिससे यह "तीर्थराज प्रयाग" बना।
प्रयाग: चारों पुरुषार्थों का प्रदायक
धर्मग्रंथों के अनुसार, प्रयाग चारों पुरुषार्थों - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता है।
धर्म: धार्मिक अनुष्ठान और पुण्य कर्मों का स्थल।
अर्थ: समृद्धि और वैभव प्राप्ति का केंद्र।
काम: इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम।
मोक्ष: अंतिम मुक्ति और आत्म-शुद्धि का पावन स्थल।
प्रयागराज केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना, संस्कृति और पुण्य का केंद्र है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, जिसे "त्रिवेणी संगम" कहते हैं।
यह श्रद्धालुओं, संतों और ऋषियों के लिए आत्म-शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का अद्वितीय स्थान है।
वेदों और पुराणों में प्रयाग की महत्ता
प्रयाग की महिमा को वेदों और पुराणों में अत्यंत विशद रूप से वर्णित किया गया है। एक समय, ऋषियों ने शेषनाग से यह प्रश्न किया कि प्रयाग को तीर्थराज क्यों कहा जाता है?
शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक अवसर पर सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की गई।
पहली बार, जब भारत के समस्त तीर्थों को एक तुला के एक पलड़े पर और प्रयाग को दूसरे पलड़े पर रखा गया, तब भी प्रयाग का पलड़ा भारी पड़ा।
दूसरी बार, जब सप्तपुरियों (काशी, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, कांची, अवंतिका, द्वारका) को एक पलड़े में रखा गया और प्रयाग को दूसरे में, तब भी प्रयाग का पलड़ा अधिक भारी रहा।
प्रयाग की महत्ता का आधार केवल इसकी ऐतिहासिकता ही नहीं, बल्कि यह है कि यह तीनों लोकों में श्रेष्ठ तीर्थ माना गया है।
यहाँ तीन पवित्र नदियों - गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, जिसे "त्रिवेणी संगम" कहा जाता है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि यहाँ स्नान, तप, दान और यज्ञ करने से मनुष्य को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
स्कंदपुराण, पद्मपुराण और महाभारत में प्रयाग को मोक्ष प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ बताया गया है।
स्वयं भगवान ब्रह्मा ने इसे यज्ञों के लिए सबसे पवित्र स्थल घोषित किया था।
प्रयाग: पुण्य प्राप्ति का द्वार
स्कंदपुराण में कहा गया है:
"यत्र गंगा च यमुना चैव सरस्वती च, संगच्छन्ति तत्र पुण्यं बहुजातं भवति"
(अर्थात, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है, वहाँ अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।)
इसलिए प्रयाग को केवल तीर्थ ही नहीं, तीर्थों का राजा - तीर्थराज कहा जाता है।
तीर्थराज प्रयाग: सनातन धर्म का परम तीर्थ
प्रयाग, जिसे तीर्थराज कहा जाता है, समस्त तीर्थों में श्रेष्ठ माना गया है। इसकी महिमा वेदों और पुराणों में विस्तार से वर्णित है। यह स्थान धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है।


प्रयागो मध्यमावेदिः पूर्वावेदिः गयाशिरः।विरजा दक्षिणा वेदिरनन्तफलदायिनी ।। प्रतीची पुष्करा वेदिस्त्रिभिः कुण्डैरलंकृता |समन्त पंचका प्रोक्ता वेदिरेवोत्तराव्यया ।।
वामन पुराण
तीर्थराज प्रयाग की विशिष्टता
प्रयाग की अद्वितीय महिमा
शास्त्रों के अनुसार, यह तीनों लोकों में विख्यात तीर्थ है। यहाँ स्नान करने से पुण्यलोक की प्राप्ति होती है और जिनकी यहाँ मृत्यु होती है, वे पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।
भगवान वासुदेव स्वयं प्रयाग की रक्षा करते हैं।
भगवान शिव वटवृक्ष की रक्षा करते हैं, जो समस्त पापों का नाश करने वाला है।
सभी देवगण मिलकर इस तीर्थ की रक्षा करते हैं।
प्रयाग का स्मरण मात्र ही पापों का नाश कर देता है, तो यहाँ स्नान और दर्शन का पुण्य अवर्णनीय है।
प्रयाग के पंचकुंड और गंगा-स्मरण का महत्व
यहाँ स्थित पंचकुंड के मध्य में गंगा जी प्रवाहित होती हैं।
गंगा का केवल स्मरण करने से ही पुण्य की प्राप्ति होती है।
गंगा के दर्शन मात्र से व्यक्ति को शुभता प्राप्त होती है।
गंगा में स्नान और जलपान करने से सात पीढ़ियाँ पवित्र हो जाती हैं।
प्रयाग: मोक्ष का द्वार
§ जो व्यक्ति:
सत्य बोलता है,
क्रोध पर विजय प्राप्त करता है,
अहिंसा और धर्म का पालन करता है,
गौ और ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा रखता है,
तथा गंगा-यमुना के संगम में स्नान करता है,
वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मनोरथों की प्राप्ति करता है।


हिमवद्विनध्ययोर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि । प्रत्यगेव प्रयागाश्च मध्यदेशः प्रकीर्तितः ।।
मनुस्मृति
प्रयाग: सभी युगों में श्रेष्ठ तीर्थ
सत्ययुग में नैमिषारण्य तीर्थ सर्वोत्तम था।
त्रेतायुग में पुष्कर तीर्थ सर्वश्रेष्ठ माना गया।
द्वापरयुग में कुरुक्षेत्र सर्वाधिक पवित्र था।
कलियुग में गंगा और विशेष रूप से प्रयाग का महत्व सर्वोपरि है।
🔹 "कलियुग में सांसारिक कष्टों से मुक्ति का कोई अन्य उपाय नहीं, गंगा ही सर्वोत्तम औषधि है।"
प्रयाग में व्रत और तप का फल
प्रयाग में तीन दिन उपवास करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।
प्रयाग में अनशन व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
प्रयाग क्षेत्र पाँच योजन (लगभग 40 कि.मी.) में फैला हुआ है।
जो व्यक्ति यहाँ मास पर्यन्त स्नान करता है, वह सभी क्लेशों से मुक्त होकर परमपद प्राप्त करता है।
प्रयाग के अन्य पवित्र तीर्थ
अग्नि तीर्थ (यमुना के दक्षिण तट पर)
नरक तीर्थ (धर्मराज का तीर्थ) – जहाँ स्नान करने से स्वर्ग प्राप्त होता है।
सूर्य का निरंजन तीर्थ – यहाँ इंद्र और देवगण नित्य संध्योपासना करते हैं।


बहुरि राम जानकिहिं देखाई।जमुना कलिमल हरनि सोहाई।। पुनि देखी सुरसरी पुनीता।राम कहा प्रनाम करु सीता ।।
रामचरित मानस
सभी तीर्थों की संगम स्थली
शास्त्रों में कहा गया है कि प्रयाग में: नैमिष, पुष्कर, गया, गंगासागर, सिन्धुसागर, चैत्रक आदि पवित्र तीर्थों की तीर्थशक्ति विद्यमान रहती है।
प्रयाग केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि यह सनातन धर्म की आस्था, विश्वास और मुक्ति का प्रतीक है। यह तीर्थराज अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करता है और हर युग में इसकी महिमा अद्वितीय रही है।
तीर्थों के तीर्थ: प्रयाग का दिव्य महत्व
प्रयाग को तीर्थों का राजा (तीर्थराज) कहा जाता है। यह केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का केंद्र है। इसकी महिमा वेदों, रामायण, महाभारत, और पुराणों में बार-बार वर्णित हुई है।
वेदों में प्रयाग की महिमा
👉 ऋग्वेद खिल 10.165 में पहली बार संगम का उल्लेख मिलता है:
"जहाँ पर गंगा और यमुना (सित-असित) नदियाँ मिलती हैं, वहाँ स्नान करने वाले परम पद को प्राप्त कर संसारिक बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।"
इससे स्पष्ट होता है कि प्रयाग का संगम मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
महाभारत और रामायण में प्रयाग
महाभारत में कहा गया है कि तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की गई, जहाँ प्रयाग का पलड़ा सभी तीर्थों से भारी पड़ा।
वाल्मीकि रामायण में भगवान श्रीराम के प्रयाग प्रवास और उनकी दिव्य यात्रा का उल्लेख है।
पद्म पुराण ने भी तीर्थराज की महिमा को रेखांकित किया है।
प्रयाग का विशिष्ट गौरव
1️ मोक्षदायिनी परंपरा – प्रयाग संगम में स्नान और अक्षयवट के दर्शन से मुक्ति प्राप्त होती है।
2️ प्रहलाद की गाथा – दैत्यकुल में जन्मे भक्त प्रहलाद की गणना सप्तर्षियों में की गई, क्योंकि उन्होंने प्रयाग में तपस्या की थी।
3️ भगवान सोम, वरुण और प्रजापति की जन्मस्थली – इसलिए इसे भास्कर क्षेत्र भी कहा जाता है।
4️ अक्षयवट का चमत्कार – यह अक्षय (अविनाशी) वृक्ष माना जाता है, जिसके दर्शन मात्र से पुण्यलाभ होता है।


शृणु राजन्प्रयागे तु अनाशकफलं विभो। प्राप्नोति पुरुषो धीमाञ्श्रद्दधानो जितेन्द्रियः ।।३ अहीनाङ्गोऽप्यरोगश्च पञ्चेन्द्रियसमन्वितः । अश्वमेधफलं तस्य गच्छतस्तु पदे पदे ।।
मत्स्य पुराण
प्रयाग की आध्यात्मिक महत्ता
संगम में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है।
यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध तीर्थ है, जहाँ स्नान करने पर संसार के बंधनों से मुक्ति मिलती है।
यहाँ की गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन ज्ञान, भक्ति और कर्म का प्रतीक है।
प्रयाग केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति और मोक्षदायिनी शक्ति का प्रतीक है। यह स्थान सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है, जहाँ स्वयं देवता भी स्नान के लिए आतुर रहते हैं।
प्रयागराज की समृद्ध विरासत और पवित्र सुंदरता का अन्वेषण करें।







