कुंभ पर्व की उत्पत्ति से संबंधित कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें तीन प्रमुख कथाएँ शामिल हैं – पहली गरुड़ और अमृत कलश की कथा, दूसरी समुद्र मंथन और अमृत प्राप्ति की कथा, और तीसरी गरुड़ पुराण में वर्णित अमृत कलश के गिरने की कथा। इनमें से समुद्र मंथन की कथा सबसे अधिक प्रसिद्ध और स्वीकार्य मानी जाती है। यह कथा अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष का प्रतीक है और यह दर्शाती है कि सच्चे परिश्रम और भक्ति से ही अमृत (अर्थात मोक्ष) की प्राप्ति संभव है।
कुंभ पर्व की उत्पत्ति से संबंधित तीन प्रमुख पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। पहली कथा महर्षि दुर्वासा, दूसरी प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों कद्रू और विनता, और तीसरी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। हालाँकि, पहली दो कथाएँ भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन की है।
पहली कथा – इंद्र और महर्षि दुर्वासा
इस कथा के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को एक दिव्य माला प्रदान की। इंद्र ने उसे अपने हाथी ऐरावत के मस्तक पर रख दिया, लेकिन ऐरावत ने उसे सूंड से गिरा दिया और पैरों से कुचल दिया। यह देखकर महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया, जिससे उनकी वर्षा कराने की शक्ति समाप्त हो गई। इस कारण पूरे संसार में अकाल पड़ गया, जिससे देवता, असुर और मनुष्य सभी पीड़ित हो गए।
संकट से उबरने के लिए भगवान विष्णु ने सुझाव दिया कि देवताओं और असुरों को मिलकर समुद्र मंथन करना चाहिए, जिससे लक्ष्मी, धन और अमृत प्राप्त हो सके।
समुद्र मंथन और अमृत कलश की कथा
समुद्र मंथन से कुल 14 अमूल्य रत्न निकले, जिनमें हलाहल (विष), अमृत कलश और देवी लक्ष्मी भी शामिल थीं। भगवान शिव ने हलाहल विष का पान कर लिया, जिससे संपूर्ण सृष्टि नष्ट होने से बच गई।
जब अमृत कलश प्राप्त हुआ, तो देवताओं ने असुरों को अमृत से वंचित करने के लिए एक चाल चली। वे अमृत कलश को नागलोक (सर्पों का साम्राज्य) में छिपा आए। बाद में, गरुड़ (एक दिव्य पक्षी, जो सर्पों का शत्रु था) ने नागलोक से अमृत कलश को पुनः प्राप्त किया। जिस मार्ग से वह अमृत कलश को क्षीर सागर (दूध का समुद्र) तक ले गए, उन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं। यही स्थान आगे चलकर कुंभ मेले के प्रमुख स्थल – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक के रूप में प्रसिद्ध हुए।


रामचरित मानस
कुंभ की पौराणिक कथाएँ
बहुरि राम जानकिहिं देखाई। जमुना कलिमल हरनि सोहाई।। पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता ।।
दूसरी कथा – कद्रू और विनता का विवाद
प्रजापति कश्यप की दो पत्नियाँ थीं – कद्रू और विनता। एक दिन दोनों के बीच यह शर्त लग गई कि सूर्य रथ को खींचने वाले घोड़ों का रंग काला है या सफेद। हारने वाली को विजेता की दासी बनना था।
कद्रू ने अपने नागवंशीय पुत्रों को घोड़ों के शरीर पर लपेट दिया, जिससे वे काले प्रतीत होने लगे। विनता ने घोड़ों को काला मान लिया और शर्त हार गई, जिससे उसे कद्रू की दासी बनना पड़ा।
कद्रू ने शर्त रखी किअगर कोई नागलोक से अमृत कलश (अमृत घट) प्राप्त कर लाए, तो विनता को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। यही कारण था कि विनता के पुत्रगरुड़नेनागलोक से अमृत कलश लाने का कठिन कार्य किया।


हिमवद्विनध्ययोर्मध्यं यत्प्राग्विनशनादपि । प्रत्यगेव प्रयागाश्च मध्यदेशः प्रकीर्तितः ।।
मनुस्मृति
गरुड़ और अमृत कलश की कथा
विनता ने अपने पुत्र गरुड़ से कहा कि यदि वह अमृत कलश प्राप्त कर ले, तो वह कद्रू की दासी बनने के बंधन से मुक्त हो जाएगी। गरुड़ ने इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया और अमृत कलश लेकर हिमालय के गंधमादन पर्वत पर स्थित अपने पिता प्रजापति कश्यप के आश्रम की ओर चल पड़ा।
वासुकी नाग ने यह बात इंद्र को बताई। इंद्र ने गरुड़ पर चार अलग-अलग स्थानों – प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में हमला किया, जहाँ अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यही कारण है कि ये चारों स्थान कुंभ मेले के प्रमुख स्थल माने जाते हैं।
समुद्र मंथन और अमृत कलश की कथा
इस कथा के अनुसार, एक बार देवता महर्षि दुर्वासा के श्राप से कमजोर पड़ गए। अपनी खोई हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिए, उन्होंने ब्रह्मा जी से परामर्श लिया। ब्रह्मा ने सुझाव दिया कि अमृत प्राप्त करने के लिए उन्हें असुरों की सहायता से समुद्र मंथन करना चाहिए।
देवताओं की शारीरिक क्षमता कमजोर थी, इसलिए उन्होंने असुरों से मदद मांगी और उन्हें अमृत में हिस्सेदारी देने का वचन दिया।
मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नागराज को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ। देवताओं ने नागराज की पूंछ पकड़ी, जबकि असुरों ने उसका सिर। मंथन के दौरान अनेक दिव्य रत्न और शक्तियाँ समुद्र से निकलीं, जिनमें –
ऐरावत (स्वेत हाथी)
उच्चैःश्रवा (दिव्य अश्व)
माँ लक्ष्मी
चंद्रमा
कौस्तुभ मणि
अप्सराएँ
कालकूट विष (जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया)
कामधेनु (दिव्य गाय)
कल्पवृक्ष (इच्छा पूर्ण करने वाला वृक्ष)
विश्वकर्मा (दिव्य शिल्पी)
अंततः धन्वंतरि देव अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इसे देखते ही देवता और असुर दोनों उसे हथियाने के लिए दौड़ पड़े। इस संघर्ष के दौरान, असुरों ने अमृत कलश पर कब्जा कर लिया।
भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को मोहित कर दिया और चालाकी से अमृत देवताओं को पिला दिया। इस दौरान इंद्रपुत्र जयंत ने अमृत कलश को लेकर भागना शुरू किया, और देवताओं-असुरों के बीच 12 दिनों (जो पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर हैं) तक संघर्ष चलता रहा। इसी दौरान अमृत की बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं, जिससे ये चारों स्थान कुंभ स्थलों के रूप में पवित्र हो गए।
गरुड़ पुराण के अनुसार कथा
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब देवता और असुर अमृत कलश के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब अमृत कलश का कुछ भाग छलक कर चार स्थानों – प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गया। इस कारण ये स्थान पवित्र तीर्थों के रूप में प्रसिद्ध हो गए।


कुंभ पर्व का आयोजन किस वर्ष और किस स्थान पर होगा, यह पंचांग (अल्मनैक) द्वारा निर्धारित किया जाता है।
हरिद्वार – फाल्गुन-चैत्र (मार्च-अप्रैल) में लगभग एक महीने तक।
प्रयागराज – माघ (जनवरी-फरवरी) में, विशेष रूप से अमावस्या के दिन त्रिवेणी संगम में स्नान अत्यंत शुभ माना जाता है।
उज्जैन – कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) महीने में क्षिप्रा नदी के तट पर।
नासिक – श्रावण (जुलाई-अगस्त) महीने में गोदावरी नदी के तट पर।
अर्ध कुंभ और पूर्ण कुंभ
हरिद्वार और प्रयागराज में पूर्ण कुंभ के बीच अर्ध कुंभ का आयोजन भी किया जाता है।
जब पूर्ण कुंभ उज्जैन या नासिक में होता है, तो उसी वर्ष अर्ध कुंभ हरिद्वार या प्रयागराज में मनाया जाता है।


प्रयागो मध्यमावेदिः पूर्वावेदिः गयाशिरः । विरजा दक्षिणा वेदिरनन्तफलदायिनी ।। प्रतीची पुष्करा वेदिस्त्रिभिः कुण्डैरलंकृता | समन्त पंचका प्रोक्ता वेदिरेवोत्तराव्यया ।।
वामन पुराण
कुंभ पर्व की तिथियाँ और आयोजन अवधि
त्रिवेणी संगम में स्नान का महत्व - माघ मास (जनवरी-फरवरी) में त्रिवेणी संगम में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।यह स्नान पापों के नाश और पुण्य प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
इन तीनों कथाओं से यह स्पष्ट होता है कि कुंभ पर्व अमृत की प्राप्ति और उसकी रक्षा से जुड़ा है। अमृत प्राप्ति के इन चार पवित्र स्थलों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक) में ही हर 12 वर्षों में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, जहाँ अमृत स्नान को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
कुंभ मेला सिर्फ पवित्र स्नान नहीं, ये इतिहास, खगोल, धर्म, विज्ञान, और मानवीय उत्सव का है। कुंभ मेला, यूँ तो एक आयोजन है, पर वास्तव में यह आत्मा और ब्रह्म के मिलन की महायात्रा है — एक अमृतोत्सव, जो जीवन को दिव्यता से आलोकित कर देता है।
त्रिवेणी संगम में स्नान का महत्व
माघ मास (जनवरी-फरवरी) में त्रिवेणी संगम में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।











